Thursday 14 February 2013

भारतीय चित्रकला

भारतीय चित्रकला
भारतीय चित्रकारी के प्रारंभिक उदाहरण प्रागैतिहासिक काल के हैं, जब मानव गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी किया करता था। भीमबेटका की गुफाओं में की गई चित्रकारी 5500 ई.पू. से भी ज्यादा पुरानी है। 7वीं शताब्दी में अजंता और एलोरा गुफाओं की चित्रकारी भारतीय चित्रकारी का सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
भारतीय चित्रकारी में भारतीय संस्कृति की भांति ही प्राचीनकाल से लेकर आज तक एक विशेष प्रकार की एकता के दर्शन होते हैं। प्राचीन व मध्यकाल के दौरान भारतीय चित्रकारी मुख्य रूप से धार्मिक भावना से प्रेरित थी, लेकिन आधुनिक काल तक आते-आते यह काफी हद तक लौकिक जीवन का निरुपण करती है। आज भारतीय चित्रकारी लोकजीवन के विषय उठाकर उन्हें मूर्त कर रही है।
भारतीय चित्रकारी की शैलियां
भारतीय चित्रकारी को मोटे तौर पर भित्ति चित्र व लघु चित्रकारी में विभाजित किया जा सकता है। भित्ति चित्र गुफाओं की दीवारों पर की जाने वाली चित्रकारी को कहते हैं, उदाहरण के लिए अजंता की गुफाओं व एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर का नाम लिया जा सकता है। दक्षिण भारत के बादामी व सित्तानवसाल में भी भित्ति चित्रों के सुंदर उदाहरण पाये गये हैं। लघु चित्रकारी कागज या कपड़े पर छोटे स्तर पर की जाती है। बंगाल के पाल शासकों को लघु चित्रकारी की शुरुआत का श्रेय दिया जाता है।
अजंता की गुफाएं
इन गुफाओं का निर्माणकार्य लगभग 1000 वर्र्षों तक चला। अधिकांश गुफाओं का निर्माण गुप्तकाल में हुआ। अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबंधित हैं।
एलोरा की गुफाएं
हिंदू गुफाओं में सबसे प्रमुख आठवीं सदी का कैलाश मंदिर है। इसके अतिरिक्त इसमें जैन व बौद्ध गुफाएं भी हैं।
बाघ व एलीफेटा की गुफाएं
बाघ की गुफाओं के विषय लौकिक जीवन से सम्बन्धित हैं। यहां से प्राप्त संगीत एवं नृत्य के चित्र अत्यधिक आकर्षक हैं।
हाथी की मूर्ति होने की वजह से पुर्तगालियों ने इसका नामकरण एलीफेन्टा किया।
जैन शैली
इसके केद्र राजस्थान, गुजरात और मालवा थे।  देश में जैन शैली में ही सर्वप्रथम ताड़ पत्रों के स्थान पर चित्रकारी के लिए कागज का प्रयोग किया गया। इस कला शैली में जैन तीर्र्थंकरों के चित्र बनाये जाते थे। इस शैली पर फारसी शैली का भी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। नासिरशाह (1500-1510 ई.) के शासनकाल में मांडू में चित्रित नीयतनामा के साथ ही पांडुलिपि चित्रण में एक नया मोड़ आया।
पाल शैली
यह शैली 9-12वीं शताब्दी के मध्य बंगाल के पाल वंश के शासकों के शासनकाल के दौरान विकसित हुई। इस शैली की विषयवस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित थी। दृष्टांत शैली वाली इस चित्रकला शैली ने नेपाल और तिब्बत की चित्रकला को भी काफी प्रभावित किया। 
मुगल शैली
मुगल चित्रकला शैली भारतीय, फारसी और मुस्लिम मिश्रण का विशिष्ट उदाहरण है। अकबर के शासनकाल में लघु चित्रकारी के क्षेत्र में भारत में एक नये युग का सूत्रपात हुआ।  उसके काल की एक उत्कृष्ट कृति हमजानामा है। मुगल चित्रकला नाटकीय कौशल और तूलिका के गहरेपन के लिए विख्यात है।
जहांगीर खुद भी एक अच्छा चित्रकार था। उसने अपने चित्रकारों को छविचित्रों व दरबारी दृश्यों को बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उस्ताद मंसूर, अब्दुल हसन और बिशनदास उसके दरबार के सबसे अच्छे चित्रकार थे। शाहजहां के काल में चित्रकारी के क्षेत्र में कोई ज्यादा कार्य नहीं हुआ, क्योंकि वह स्थापत्य व वास्तु कला में ज्यादा रुचि रखता था।
राजपूत चित्रकला शैली
राजपूत चित्रकला शैली का विकास 18वींशताब्दी के दौरान राजपूताना राज्यों के राजदरबार में हुआ। इन राज्यों में विशिष्ट प्रकार की चित्रकला शैली का विकास हुआ, हालांकि इनमें कुछ ऐसे समान तत्व हैं जिसकी वजह से इसका नामकरण राजपूत शैली किया गया। यह शैली विशुद्ध हिंदू परंपराओं पर आधारित है। इस शैली में रागमाला से संबंधित चित्र काफी महत्वपूर्ण हैं। इस शैली में मुख्यतया लघु चित्र ही बनाये गये। राजपूत चित्रकला की एक असाधारण विशेषता आकृतियों का विन्यास है। लघु आकृतियां  भी स्पष्टत: चित्रित की गई हैं। इस शैली का विकास कई शाखाओं में हुआ-
  • मालवा शैली: मालवा शैली अपने चमकीले और गहरे रंगों के कारण विशिष्ट है। मालवा शैली के रंगचित्रों की प्रमुख श्रृंखला रसिकप्रिया है।
  • मेवाड़ शैली: मेवाड़ शैली में पृष्ठभूमि सामान्यत: बेलबूटेदार और वास्तुशिल्प से परिपूर्ण है।
  • बीकानेर शैली: बीकानेरी शैली के अधिकांश कलाकार मुस्लिम थे। यह शैली अपने सूक्ष्म एवं मंद रंगाभास के लिए प्रसिद्ध है।
  • बूंदी शैली: इस शैली में नारी सौंदर्य के चित्रण के लिए कुछ अपने मानदण्ड स्थापित किए गए।
  • कोटा शैली: कोटा शैली काफी हद तक बूंदी शैली से मिलती-जुलती है। इस शैली में विरल वनों में सिंह और चीतों के शिकार के चित्र विश्वविख्यात हैं।
  • आंबेर शैली: आंबेर शैली के रंगचित्र समृद्ध हैं और उनमें विषय वैविध्य भी है लेकिन इसमें सूक्ष्मता का अभाव है।
  • किशनगढ़ शैली: उन्नत ललाट, चापाकार भौंहें, तीखी उन्नत नासिका, पतले संवेदनशील ओंठ तथा उन्नत चिबुक सहित नारी का चित्रण इस शैली का वैशिष्ट्य है।
  • मारवाड़ शैली: इस शैली के रंगचित्रों में पगड़ी की कुछ विशेषताएं हैं। रंग-संयोजन में चमकीले रंगों का प्राधान्य है।
  • पहाड़ी चित्रकला शैली: इस कला के चित्रित वृक्षों की बनावट पर नेपाली चित्रकला का व्यापक प्रभाव है। पहाड़ी चित्रकारों में कृष्ण गाथा अत्यंत लोकप्रिय है। बसौली शैली, गढ़वाल शैली, जम्मू शैली व कांगड़ा शैली पहाड़ी चित्रकला शैली की उप-शैलियां हैं।
बंगाल शैली
चित्रकारी की बंगाल शैली का विकास 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में ब्रिटिश राज के दौरान हुआ। यह भारतीय राष्ट्रवाद से प्रेरित शैली थी, लेकिन इसको कई कला प्रेमी ब्रिटिश प्रशासकों ने भी प्रोत्साहन दिया। रवींद्रनाथ टैगोर के भतीजे अवनींद्रनाथ टैगोर इस शैली के सबसे पहले चित्रकार थे। उन्होंने मुगल शैली से प्रभावित कई खूबसूरत चित्र बनाये। टैगोर की सबसे प्रसिद्ध कृति भारत-माता थी जिसमें भारत को एक हिंदू देवी के रूप में चित्रित किया गया था। 1920 के बाद भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के साथ इस शैली का पतन हो गया।
आधुनिक प्रवृत्ति
औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय कला पर पश्चिमी प्रभाव पूरी तरह से पडऩे लगा था। इस काल के दौरान कई ऐसे चित्रकार हुए जिन्होंने पश्चिमी दृष्टिकोण और यथार्थवाद के वेश में भारतीय विषयों का सुंदर चित्रण किया। इसी दौरान जेमिनी रॉय जैसे कलाकार भी थे जिन्होंने लोककला से प्रेरणा ली।
 भारतीय स्वतंत्रता के बाद प्रगतिशील कलाकारों ने स्वतंत्रोत्तर भारत की आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए नये विषयों व माध्यमों को चुना। इस समूह के छह प्रमुख चित्रकारों में के.एच. आगा, एस. के. बकरे, एच. ए. गदे, एम. एफ. हुसैन, एस. एच. रजा और एफ. एन. सूजा शामिल थे। इस समूह को 1956 में भंग कर दिया गया लेकिन छोटे से ही समय में इसने भारतीय चित्रकला परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया।
इस काल की एक प्रसिद्ध चित्रकार अमृता शेरगिल हैं जिन्होंने नवीन भारतीय शैली का सृजन किया। अन्य महान चित्रकारों में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और रवि वर्मा का नाम शामिल है। वर्तमान प्रसिद्ध चित्रकारों में बाल चाब्दा, वी. एस. गाईतोंडे, कृष्णन खन्ना, रामकुमार, तैयब मेहता और अकबर पदमसी शामिल हैं। जहर दासगुप्ता, प्रोदास करमाकर और बिजॉन चौधरी ने भी भारतीय कला व संस्कृति को समृद्ध बनाने में योगदान दिया है
पश्चिमी नृत्य कला
पश्चिमी नृत्य कला का इतिहास उसकी प्राचीन संस्कृति में निहित है। पश्चिमी देशों में पोलैण्ड, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, स्कैैंडीनेवियाई देश, चेक व स्लोवाकिया, रूस इत्यादि शामिल हैं, जिनमें प्रत्येक की अपनी एक विशिष्ट नृत्य शैली है। विभिन्न संस्कृतियों के मिलन से भी नई नृत्य शैलियों का उद्भव व विकास हुआ।
20वीं शताब्दी की पश्चिमी नृत्यकला में शास्त्रीय बैले के औपचारिक नियमों के खिलाफ प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इससे मुक्त शैली की नृत्यकला का विकास हुआ। आधुनिक नृत्यों में शो डांसिंग (उदाहरणस्वरूप कैनकैन जिसका विकास 1940 के आसपास पेरिस में हुआ), टैप और जाज डांस (19वीं शताब्दी में अमेरिका में जन्म), फ्री फॉर्म (जिसका प्रतिपादन अमेरिकी इसाडोरा डंकन ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में किया) अथवा आम जनता में लोकप्रिय नृत्य (रॉक एंड रोल अथवा ट्विस्ट) शामिल हैं।
बैले
17वीं शताब्दी में फ्रांस के राजा लुईस चौदहवें द्वारा नृत्यकला में रुचि लेने की वजह से बैले का जन्म हुआ। बैले, नाट्य का नृत्य रूप है जो विभिन्न शारीरिक स्थितियों, कदमों की स्थिति एवं भावप्रवण अंग भंगिमाओं के समन्वय पर आधारित है। इस नृत्य में पैरों को जमीन के सापेक्ष 90 डिग्री पर रखना होता है। बैले में पुरुष व महिला नर्तक अत्यन्त आकर्षक रूप से चक्कर लगाते हैं।
फ्रांसीसी बैले
लुईश चौदहवें के शासनकाल के बाद 1713 में पेरिस ओपेरा की स्थापना की गई जिसमें बैले की शिक्षा दी जाती थी। इस ओपेरा के नर्तक अत्यन्त भारी-भरकम दरबारी वस्त्र पहना करते थे एवं अपने चेहरे पर मुखौटा लगाते थे। सन 1800 के बाद महिला नर्तकियों ने अपने पंजों के किनारों पर नृत्य करना प्रारंभ किया इसे च्ऑन प्वाइंटच् कहा जाता है। धीरे-धीरे पुरुष नर्तकों की भूमिका दोयम दर्जे की हो कर रह गई। वे महिला नर्तकियों के सहयोगी मात्र रह गये।
रूसी बैले
19वीं शताब्दी के अंत में च्स्पीलिंग ब्यूटीÓ और स्वान लेक जैसे बैले नाटकों से रूस में इस कला का प्रचार-प्रसार हुआ। सन 1919 में प्रसिद्ध बैले निर्देशक सर्गे दियघीलेव ने पेरिस में अपनी बैले नाटिका का प्रदर्शन किया जिसे जबर्दस्त लोकप्रियता मिली। इसने रूसी बैले को विश्व भार में लोकप्रियता दिलाई।
आधुनिक बैले
रूस में आज भी बैले के रूडोल्फ नूरेयेव व मिखाइल बेरीशनिकोव जैसे महान कलाकार हैं। लेकिन कई अन्य देशों में भी नवीन तकनीक का समावेश करते हुए कई परीक्षण किये जा रहे हैं।
विश्व के प्रमुख नृत्य
नृत्यदेश
 टैंगो अर्र्जेंटीना
 साम्बा ब्राजील
 चा-चा कैरेबियाई द्वीप समूह
  कोंगा,माम्बो, रूम्बा  क्यूबा
   हॉर्नपाइप इंग्लैंड
 कॉनकॉन, निगुबेट फ्रांस
 वाल्ट्ज जर्मनी
 जिग, फेडिंग आयरलैंड
 होरा इजरायल
  टारनटेला इटली
  पोल्का, शोटिश मध्य यूरोपीय देश
 हाईलैंड फ्लिंग, जिग स्कॉटलैंड
 बोलेरो, फंडानगो,फ्लेमेन्को  स्पेन
  फाक्सट्राट, चाल्र्सटन  सं. रा.
लिंडी डांस, स्क्वायर डांसअमेरिका

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