क्या होगा दिल्ली में, लगेगा राष्ट्रपति शासन या फिर भाजपा बनाएगी सरकार?
नई दिल्ली [अजय पांडेय]। दिल्ली में अब किसकी हुकूमत कायम होगी? कांग्रेस का सफाया हो गया लेकिन अवाम ने न तो भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिया और न ही आम आदमी पार्टी के पास सरकार बनाने लायक सीटें हैं। ऐसे में निगाहें अब राजनिवास पर टिक गई हैं। उपराज्यपाल नजीब जंग के फैसले पर बहुत कुछ निर्भर करता है। संविधान विशेषज्ञ वर्तमान परिस्थितियों में दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की संभावना से भी इन्कार नहीं कर रहे। यदि ऐसी नौबत आई तो यह पहला मौका होगा जब केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर उपराज्यपाल सीधे दिल्ली के शासन की बागडोर संभालेंगे। कुछ समय के इंतजार के बाद भी सरकार गठन की सूरत नहीं बनी तो नए सिरे से भी चुनाव कराने पड़ सकते हैं।
दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 36 सीटें चाहिए। सबसे बड़े दल के रूप में उभरे भाजपा ने शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर कुल 32 सीटें जीती हैं। उसे बहुमत के लिए चार सीटों की दरकार है। आम आदमी पार्टी के पास 28 सीटें हैं, उसे बहुमत के लिए आठ सीटें चाहिए। आठ सीटें जीतने वाली कांग्रेस यदि आम आदमी पार्टी को समर्थन दे दे, तो अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में नई सरकार बन सकती है। वहीं केजरीवाल ने साफ कर दिया है कि वह विपक्ष में बैठेंगे। जाहिर तौर पर सरकार गठन को लेकर मामला उलझ गया है।
नई सरकार के गठन को लेकर पूछे जाने पर उपराज्यपाल कार्यालय के उच्चाधिकारियों ने बताया कि अभी तो उन्हें दिल्ली चुनाव कार्यालय द्वारा चुने गए विधायकों को लेकर अधिसूचना जारी किए जाने का इंतजार है। आधिकारिक तौर पर उसके बाद ही उपराज्यपाल नई सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू करेंगे। दिल्ली चुनाव कार्यालय के मुताबिक दिल्ली की चुनाव प्रक्रिया 11 दिसंबर तक पूरी की जानी है।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का मानना है कि परंपरा के अनुसार उपराज्यपाल को सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण देना चाहिए। यदि पार्टी सरकार बनाने को तैयार होती है, तो उसे सदन में विश्वास मत हासिल करने का मौका दिया जाना चाहिए। यदि भाजपा सरकार बनाने से इन्कार करती है, तो दूसरे सबसे बड़े दल आम आदमी पार्टी को उपराज्यपाल सरकार बनाने के लिए कह सकते हैं। कश्यप ने कहा कि उपराज्यपाल सदन को यह संदेश भी दे सकते हैं कि वह अपने नेता का चयन करे, लेकिन सदन का नेता तभी चुना जा सकता है जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत हासिल हो। उन्होंने कहा कि यदि कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हुआ तो उपराज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश कर सकते हैं।
दिल्ली के सियासी जानकारों की मानें तो भाजपा के लिए बहुमत जुटाने के रास्ते में कई मुश्किलें हैं। वह एक निर्दलीय विधायक को तो अपने पाले में ला सकती है, लेकिन जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर जीते शोएब इकबाल शायद ही उसके साथ जाएं। इसी प्रकार कांग्रेस को तोड़े बगैर तीन विधायकों का जुगाड़ नहीं हो सकती। यह विकल्प भी कठिन है। यदि भाजपा आम आदमी पार्टी को तोड़ना चाहे तो उसे कम से कम 10 विधायक तोड़ने होंगे, क्योंकि दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी विजय देव ने कहा कि अब आम आदमी पार्टी पर भी दल बदल विरोधी कानून लागू होगा।
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